Friday, November 17, 2017

Life में Debates(बहस) का असर



खुद को उलझाए रखने के लिए हजारो बहाने हो सकते है कारण, कोई न कोई कुछ न कुछ ऐसा कर ही देगा जो हमें पसंद नही आएगा। पर बात-बात में बहस करके भी सही समाधान हो जाए, क्या इस बात की guarantee है? specialist के अनुसार हमारी 99% बहस न सिर्फ व्यर्थ होती है, उनका कोई नतीजा भी नही निकलता। ऐसे में छोटी-छोटी बातों पर रिश्ते और मन की शांति को भंग करना कितना सही है।

कहावत है कि मुर्ख से बहस करना यही साबित करता है कि मुर्ख एक नही दो है। घर हो या बाहर, बहस शुरू होने के कई कारण हो सकते है। आमतौर पर ऐसा तब होता है, जब दोनों ही पक्ष खुद को पीड़ित और सही मान रहे होते है। बहस करना एक negative भाव है। ऐसे में उसी negativity में डूबे रहना, मन को अशांत करता है, काम में देरी होती है और रिश्तों में दूरी बढ़ने लगती है।

प्रभावी बातचीत के क्षेत्र में 25 वर्षो से अधिक का experience रखने वाले रॉब कैंडल कहते है, ’छोटी-छोटी बातों पर बहस करने लगना समझदारी की कमी है। उनकी book ‘ब्लेमस्टामिंग: why conversation go wrong and how too fix them?’ इसी मसले पर बात करती है। उनके अनुसार, ‘बहस बढ़ने पर दोनों पक्ष समाधान तलाशने के जगह एक दुसरे पर आरोप लगाते है। दोनों ही सही साबित होना चाहते है। कोई भी अपने किन्तु-परन्तु छोड़ने के लिए तैयार नही होता।‘

बचे, पर डरें नही

बहस से बचने का आशय यह नही कि आप गलत बात भी मानें या अपने सम्मान से समझौता करें। बस बहस करते समय focus समाधान पर रखें। अधिकतर मामलों में समाधान दोनों पक्षों के समझौते से निकलता है। कई बार विवाद को सुलझाने का रास्ता जीत में नही हार में छिपा होता है।

relationship expert Dr. जॉन गोटमेन कहते है,’96% मामलों में बहस के शुरूआती 3 minute बता देते है कि बहस करना कितना सार्थक रहेगा। शुरुआत में की गयी विवेकपूर्ण बातचीत बहस को बढ़ने नही देती। ‘ the argumentative Indian: writing on Indian history, culture and identity’ में अमर्त्य सेन लिखते है,’ यदि दुसरे असहमति व्यक्त करें तो नाराज न हों। सबके पास दिल है और हरेक का अपना झुकाव। उनका सही हमारा गलत है और हमारा सही उनका गलत।‘

Blogger सेन सर्जियो कहते है,’ बहस से बचने के लिए चार बातें सोचें, पहला क्या जरूरी है कि हमेशा आप सही हो, क्या उस मुद्दे उस व्यक्ति को पकड़े रखना जरूरी है, कही जल्दबाजी में राय तो नही बना रहे है और बहस का असर कहाँ और कितना लम्बा पड़ेगा?

बने बहस के बाज़ीगर

·         कई बार बहस की बुनियाद ही गलत तथ्यों पर खड़ी होती है। चूँकि आप नही चाहते कि आप गलत साबित हो, इसलिए उसी दिशा में तर्क गढ़ते चले जाते है। बेहतर है कि पहले अपने पक्ष को बेहतर तरीके से परख लें। 

·         दुसरे पक्ष को सुनने का अर्थ यह नही है कि उनकी सभी बातों से सहमत हो जाएँ। पर यह समझना भी जरूरी है कि दूसरा पक्ष किस तस्वीर को दिखाना चाह रहा। उनके डर, बेचैनी, हित-अहित और गुस्से को समझें।

·         गुस्से में न बोले। बोलते समय खुद को व् दुसरे को एक-दो minute का break दे।

·         सम्मान से बात करे। अधिकतर बहस में समाधान दोनों पक्षों की ओर से किये गये समझौते से निकलता है। सम्मान से बात करेगे तो रिश्ते आगे भी बेहतर रहेगे। 

·         व्यक्ति की जगह problem पर बात करे। अपनी भी गलती स्वीकारने से पीछे न हटें। 




                                  Feelings पर Control


   




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