Friday, July 20, 2018

जीवन में छोटे बदलाव और बड़ा असर

Small change in life and big impact
Small change in life and big impact

अधूरे कामों का ढेर, किये जाने वाले कामों की लम्बी लिस्ट, हर काम में फंसा एक पेंच.. सब कुछ अस्त-व्यस्त। वजह नई जिम्मेदारियां, गलत habits या और बेहतर की अपेक्षा?  समझ नही आता, काम करें तो कैसे? जो बिखरा है, उसे तिनका-तिनका समेटे कैसे?

बदलाव की इच्छा को अकसर मज़बूरी से जोड़ा जाता है। मानो कुछ गड़बड़ी है, जिसे ठीक करना है। कोई कमी है, जिसे ठीक करना है। कोई कमी है, जिसे दूर किया जाना है। ऐसे में बदलाव की इच्छा अभाव व हीनता के भाव से जन्म लेती है। पर यह भी हो सकता है कि आप नई भूमिका में हों, जहां कुछ अलग करना हो। यह भी कि आप पहले ही अच्छा काम कर रहे हों। ना ही किसी से कम और ना ही किसी के जैसा। ऐसे में बदलाव, हर कदम पर खुद को बेहतर बनाने की सहज इच्छा का नाम भी हो सकता है। वजह कोई भी हो, शुरुआत आपको ही करनी होती है।

कुछ बड़ा ही क्यों?

हम कुछ बड़ा होने और कुछ बड़ा करने पर ही जोर देते है। जबकि सच यह भी है कि सब कुछ भी अगर बदलना हो तो वह एक साथ नही, धीरे-धीरे होता है। सही दिशा में बढ़ाएं छोटे-छोटे कई कदम ज्यादा बेहतर है, बजाय एक बड़ी छलांग के, जो वापस पीछे ही धकेल दें। आमतौर पर हम जोश में एक साथ सब ठीक करने की कोशिश करते है। नतीजा पहले ही दिन खप जाते है। चुक जाते है। हॉवर्ड साइकायट्री स्कूल में instructor व् writer जोसेफ ए. श्रेड मानते है कि छोटे बदलाव असरदार होते है। एक साथ सब बदलने की जरूरत नही होती।

टालें नही, काम करें

motivational गुरु ‘चींटी की बुद्धि’ अपनाने पर जोर देते है। खासकर तब जब सब काम रुके हुए लगते है। धैर्य रखने का मतलब काम से बचना नही है। motivational speaker बेरी डेवनपोर्ट कहती है, ‘जब सब बिखरा हो, रुकावटें हों, तो चींटी की तरह लचीलापन व् धैर्य रखें। थोड़ा सा discipline, थोड़ी सी विनम्रता, गुस्से पर काबू और दूसरों को सुनना असरदार बदलाव लाता है।

एक साधे सब सधे

psychology मनुष्य जीवन के चार प्रमुख पक्ष मानता है- अंतरंग जीवन, पारिवारिक जीवन, professional और सामाजिक जीवन। हम चारों पक्षों को जीते है। किसी भी एक पक्ष का अधूरापन चारों पर असर डालता है। इसी तरह किसी एक पक्ष को सुधारने की कोशिश दूसरे पक्षों को भी सुधारने की कोशिश दुसरे पक्षों को भी संतुलित कर देती है। जीवन को संतुलन की ओर ले जाने के लिए professor जोसेफ ए. श्रेड ‘I am approach’ का सिद्धांत देते है। क्या है I am approach? उनके अनुसार I-am, वर्तमान की अधिकतम क्षमता है। वह I-am को चार भाग में बांटते है- घर, समाज, तन-मन तथा स्वयं के बारे में राय। वह कहते है, ‘कुछ सही नही होगा कि भावना बदली जा सकती है। जब हम यह विश्वास करते है कि हम हर अगले क्षण बेहतरी की ओर बढ़ रहे है।‘

यूँ करें शुरुआत

1-  सुबह 10 minute पहले उठें। हर रोज के मुख्य कामों की सूची बना लें।

2-  सबसे पहले उन कामों को निपटाएं, जिनसे दूसरों के काम जुड़े है, जैसे team के लोगों से मिलकर उन्हें काम सौप देना, मेल के जवाब तुरंत देना। इससे काम रुकेगा नही, काम टाले नही।

3-  अपने स्तर पर त्रुटिहीन काम करने की कोशिश करें।

4-  डेडलाइन का पालन करें। सामान को व्यस्थित रखें।

हम जैसा सोचते है, वैसा महसूस भी करते है। दिमाग क्या सोच रहा है, उससे अधिक हमारा काबू इस पर हो सकता है, हम क्या सोचें। क्या आप अपने दिमाग को सही निर्देश देने के लिए तैयार है?











No comments:

Post a Comment