Monday, September 10, 2018

General Science सामान्य विज्ञान- 1



Blood (रक्त)

1-  blood एक शारीरिक तरल है जो रक्त वाहिनियों के अंदर विभिन्न अंगो में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है।

2-  रक्त प्लाज्मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज्मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते है। प्लाज्मा के सहारे ही ये कण सारे body में पहुंच पाते है और वह प्लाज्मा ही है जो आंतो से शोषित पोषक तत्वों को body के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थो को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है।

3-  रक्तकण तीन प्रकार के होते है, लाल रक्त कणिका, श्वेत कणिका और प्लैतलैट्स।

4-  लाल रक्त कणिका श्वसन अंगो से ऑक्सीजन ले कर सारे body में पहुंचाने का और CO2 को body से श्वसन अंगो तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनीमिया) का रोग हो जाता है।

5-  श्वैत रक्त कणिका हानिकारक तत्वों तथा बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं से body की रक्षा करते है।

6-  प्लैतलैट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा blood बनाने में सहायक होते है।

7-  मनुष्य-शरीर में करीब पांच लिटर blood विधमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर 120 दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली में टूटती रहती है। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि-मज्जा में इसका उत्पादन भी होता रहता है। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे body में blood की कमी नही हो पाती।

8-  मनुष्यों में रक्त ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से रक्त को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है।

9-  blood का प्रमुख कार्य है: उत्तको को oxygen पहुंचाना, प्रतिरक्षात्मक कार्य, body pH control करना एवं उत्सर्जी पदार्थो को बाहर करना जैसे- यूरिया Co2, lactic acid.

तंत्रिका तंत्र (Nervous System)

1-  तंत्रिका तंत्र के द्वारा विभिन्न अंगो का control और अंगो और वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है। तंत्रिकातंत्र में मस्तिष्क, मेरुरज्जु और इनसे निकलनेवाली तंत्रिकाओं की गणना की जाती है।

2-  तंत्रिका कोशिका, तंत्रिका तंत्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक अन्य कोशिकाएं मिलकर तंत्रिका तंत्र के कार्यो को सम्पन्न करती है। इससे प्राणी को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती है।

3-  पौधों तथा एककोशिकीय प्राणियों जैसे अमीबा इत्यादि में तंत्रिका तंत्र नही पाया जाता है। हाइड्रा, प्लेनेरिया, तिलचट्टा आदि बहुकोशिकीय प्राणियों में तंत्रिका तंत्र पाया जाता है। मनुष्य में सुविकसित तंत्रिका तंत्र पाया जाता है।

4-  तंत्रिका तंत्र के दो मुख्य भाग किये जाते है: केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क, मेरुरज्जु) और परिधीय तंत्रिका तंत्र (कपालीय तंत्रिकाए, मेरुरज्जु की तंत्रिकाएं) ।

प्रजनन तंत्र (Reproductive System)

1-  प्रजनन तंत्र का कार्य संतानोत्पत्ति है। प्राणिवर्ग मात्र में प्रकृति ने संतानोत्पत्ति की अभिलाषा और शक्ति भर दी है। जीवन का यह प्रधान लक्षण है।

2-  प्राणियों की निम्नतम श्रेणी, जैसे अमीबा नामक एककोशी जीव, जीवाणु तथा virus में प्रजनन या संतानोत्पत्ति ही जीवन का लक्षण है। निम्नतम श्रेणी के जीवाणु अमीबा आदि में संतानोत्पत्ति केवल विभाजन (direct division) द्वारा होती है। एक जीव बीच में से संकुचित होकर दो भागों में विभक्त हो जाता है। कुछ समय पश्चात् यह नवीन जीव भी विभाजन प्रारम्भ कर देता है।

3-  ऊँची श्रेणियों के जीवों में nature ने नर और मादा body ही पृथक कर दिए है और उनमें ऐसे अंग उत्पन्न कर दिए है जो उन तत्वों या अणुओं को उत्पन्न करते है, जिनके संयोग से माता-पिता के समान नवीन जीव उत्पन्न होता है, प्रथम अवस्था में यह डिम्ब (ovum) कहलाता है और फिर आगे चलकर गर्भ या भ्रूण (foetus) कहा जाता है। इसको धारण करने के लिए भी मादा शरीर में एक पृथक अंग बनाया गया है, जिसको गर्भाशय (Uterine) कहते है।

4-  समस्त स्तनपायी (mammalia) श्रेणी में, जिनमें मनुष्य भी एक है, नर में अंडग्रंथि, शुक्राशय और शिश्न गर्भ को उत्पन्न करनेवाले अंग है। स्त्री body में इन्हीं के समान अंग डिम्बग्रंथि, डिम्बवाही नलिका और गर्भाशय है। योनि भी प्रजनन अंगो में ही गिनी जाती है, यद्दपि वह केवल एक मार्ग है।

5-  जनन (Reproduction) द्वारा कोई जीव (वनस्पति या प्राणी) अपने ही सदृश किसी दूसरे जीव को जन्म देकर अपनी जाति की वृद्धि करता है। जन्म देने की इस क्रिया को जनन कहते है। जनन जीवितों की विशेषता है। 

ज्ञानेन्द्रियां (Sensory System)

1-  ज्ञानेन्द्रियां वातावरण के परिवर्तनों को ग्रहण करने वाले अंगो को कहते है। आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा प्रमुख ज्ञानेन्द्रियां है। आँख का सम्बन्ध दृष्टि से है। नाक द्वारा सूंघकर किसी वस्तु की सुगंध को ज्ञात किया जा सकता है। जीभ पर उपस्थित स्वाद कलिकाओं से भोजन के स्वाद की जानकारी प्राप्त होती है।

2-  आँख या नेत्र जीवधारियों का वह अंग है जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील है। यह प्रकाश को संसूचित करके उसे तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा विधुत- रासायनिक संवेदों में बदल देता है। उच्चस्तरीय जन्तुओं की आँखें एक जटिल प्रकाशीय तंत्र की तरह होती है जो आसपास के वातावरण से प्रकाश एकत्र करता है, मध्यपट के द्वारा आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की तीव्रता का control करता है, इस प्रकाश को लेंसों की सहायता से सही स्थान पर ध्यान करता है (जिससे image बनता है) इस image को विधुत संकेतों में बदलता है, इन संकेतों को तंत्रिका कोशिकाओं के माध्यम से मस्तिष्क के पास भेजता है।

3-  कान श्रवण प्रणाली का मुख्य अंग है। कान वह अंग है जो ध्वनी का पता लगाता है, यह न केवल ध्वनी के लिए एक ग्राहक (receiver) के रूप में कार्य करता है, अपितु body के संतुलन और स्थिति के बोध में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है। “कान” शब्द को पूर्ण अंग या सिर्फ दिखाई देने वाले भाग के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। बाह्यकर्ण श्रवण प्रक्रिया के कई कदमो में से सिर्फ पहले कदम पर ही प्रयुक्त होता है और body को संतुलन बोध कराने में कोई भूमिका नही निभाता। कशेरुकी प्राणियों में कान जोड़े में सममितीय रूप से सिर के दोनो ओर उपस्थित होते है। यह व्यवस्था ध्वनी स्रोतों की स्थिति निर्धारण करने में सहायक होती है।

4-  नाक रीढ़धारी प्राणियों में पाया जाने वाला छिद्र है। इससे हवा body में प्रवेश करती है जिसका उपयोग श्वसन क्रिया में होता है। नाक द्वारा सूंघकर किसी वस्तु की सुगंध को ज्ञात किया जा सकता है।

5-  जीभ मुख के तल पर एक पेशी होती है, जो भोजन को चबाना और निगलना आसान बनाती है। यह स्वाद अनुभव करने का प्रमुख अंग होता है, क्योंकि जीभ स्वाद स्वाद करने का प्राथमिक अंग है, जीभ की उपरी सतह पेपिला और स्वाद कलिकाओं से ढंकी होती है। जीभ का दूसरा कार्य है स्वर control करना, यह सवेंदनशील होती है और लार द्वारा नम बनी रहती है, साथ ही इसे हिलने-डुलने में मदद करने के लिए बहुत सारी तंत्रिकाएं तथा रक्त वाहिकाएं मौजूद होती है।


6-  skin body का बाह्य आवरण होती है। चूँकि यह सीधे वातावरण के contact में आती है, इसलिए skin रोगजनकों के खिलाफ body की सुरक्षा में एक बहुत ही important भूमिका निभाती है। इसके अन्य कार्यों में जैसे तापावरोधन (insulation), तापमान विनियमन, संवेदना, vitamin-D का संश्र्लेषण और vitamin-b फोलेट का संरक्षण करती है। बुरी तरह से क्षतिग्रस्त skin निशान उत्तक बना कर चंगा होने की कोशिश करती है। यह अक्सर रंगहीन और वर्णहीन होता है। 




  


  






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