Tuesday, February 27, 2018

जो सोचा, नही हुआ तो क्या हुआ!




The Thought is not what happened

life में हमेशा वैसा नही होता, जैसा हम सोचते हैं। यह जानते हुए भी कि जब कभी सोचे हुए से कुछ अलग होता है, हम उखड़ने लगते हैं। निराश हो जाते हैं। कई बार match शुरू होने से पहले ही खुद को ‘out’ मान लेते है। और फिर वह सब कुछ धुंधला जाता है, जो उस समय हो रहा होता है या हो सकता है।

life का असली रोमांच plan-b में छिपा है। पर हम अक्सर उससे पहले ही खुद को हार मान लेते है। ये शब्द बातचीत में management के एक professor ने कहे थे। रोजमर्रा में छोटी-बड़ी ऐसी कई बातें होती है, जब चीजें मन मुताबिक नही होती। कभी हम बड़ी आसानी से तालमेल बिठा लेते है, तो कई बार एक ही विचार पर खुद को इतना खपा चुके होते है कि उससे कुछ भी अलग स्वीकार कर ही नही पाते।

हाल में एक friends ईद के दिन सुबह जामा मस्जिद गये। वह कुछ खास photo खीचना चाहते थे। काफी उत्साह था। सब तय कर चुके थे। इतना कि शायद जाने से पहले वे कुछ तस्वीरें भी मन में ही खींच चुके थे। हालाकिं वे जल्दी गये थे, पर वहां जाकर देखा कि नमाज हो चुकी है। लोग बाहर आ रहे थे। इस बात के लिए उनका मन तैयार नही था। वह बुरी तरह उखड़ गये। गुस्सा थे कि उन्होंने किसी से समय की जानकारी क्यों नही ली? वे बाहर से ही लौट आये और फिर दिनभर उदास रहें।

यह पूछने पर कि और भी तो कितना कुछ रहा होगा न वहां? उन्होंने जवाब दिया,’हां था, पर उस समय न उन्हें market दिखा, न रौनक और न ही खिलखिलाते चेहरे।‘

हम सब जानतें हैं

motivational speaker बेरी डेवनपोर्ट कहती है,’ कई बार हम ‘I know everything aptitude’ यानी हम सब जानते है कि तर्ज पर व्यवहार कर रहे होते है। हम मन में ही अपना नक्शा बना लेते है और फिर सब कुछ को उस नक्शे में fit करने की कोशिश करते है, जिससे यात्रा के रहस्यों का हमारा रोमांच अधूरा ही रह जाता है।‘

दरअसल, एक तो हम उतने समझदार होते नही, जितना खुद को मानते है। दूसरा, हम अपनी गलती को बेहतर option से सुधारने में भी असफल रहते हैं। इसी कारण हम उस समय जिन स्थितियों और लोगो के बीच होते है, उनके साथ होकर भी नही होते।

उम्मीदों का hangover

दुःख व् निराशा के समय अक्सर तीन स्थितियां होती है। कभी कुछ हमारी सोच के अनुरूप नही होता, कई बार दूसरों की प्रतिक्रिया दुःख पहुंचाती है और तीसरा कभी हम अपने लिए बहुत ऊँचा सोच लेते है। coach व् speaker क्रिस्टिन हेसलर अपनी पुस्तक ‘expectation hangover: overcoming disappointment in work, love and life’ में इसे उम्मीदों का नशा कहती हैं। उनके अनुसार,’उम्मीदों का नशा alcohol के नशे से भी देर तक रहता है। कभी-कभी मन की सेहत के लिए उससे से भी अधिक नुकसानदायक। प्रेरणा की कमी, अपराधबोध और शमिन्दगी का भाव असफलता से मिले निराशा को और अधि बढ़ा देते है।‘

जितने Option, उतनी ख़ुशी

जिन्दगी को जीने के कई तरीके हो सकते है। एक तरीका है, यही करना कुछ नही और या फिर ये नही तो कुछ और सही। online books लिख चुकी शिखा धवन कहती है, ‘खुद को आजाद रखने का तरीका है कि हम केवल एक option यानी plan-a की सीमित सोच से जितना जल्दी हो सके बाहर आ जाएँ।‘

सवाल है कि plan-b,c और d क्या है? भारतीय दर्शन में इसका जवाब ढूंढे तो यह अधिक से अधिक आज में जीने की कोशिश है।








No comments:

Post a Comment