Thursday, July 19, 2018

General Science सामान्य विज्ञान-1

1-  Protein

1-  प्रोटीन एक जटिल nitrogen युक्त organic पदार्थ है जिसका गठन carbon, hydrogen, oxygen एवं nitrogen तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ protein में इन elements के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, तॉबा तथा phosphors भी उपस्थित होता है।

2-  रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल protein, संयुक्त protein तथा व्युत्पन्न protein नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल protein का गठन केवल amino acid द्वारा होता है एवं संयुक्त protein के गठन में amino acid के साथ कुछ अन्य पदार्थो के अणु भी संयुक्त रहते है। व्युत्पन्न protein वे protein है जो सरल या संयुक्त protein के विघटन से प्राप्त होते है। amino acid के polymerization से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा 10000 से अधिक होती है।

3-  protein skin, blood, मांसपेशियों तथा bones की cells के विकास के लिए आवश्यक होते है। जंतुओं के body के लिए कुछ आवश्यक होते है। जंतुओं के body के लिए आवश्यक protein enzymes, hormones, ढोने वाला protein, सिकुड़ने वाला protein, संरचनात्मक protein एवं सुरक्षात्मक protein है।

4-  protein का मुख्य कार्य body की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं enzymes के रूप में body की जैवरासायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। आवश्यकतानुसार इससे energy भी मिलती है। एक ग्राम protein के प्रजारण से body को 4.1 calorie ऊष्मा प्राप्त होती है। protein द्वारा ही प्रतिजैविक (antibody) का निर्माण होता है जिससे body प्रतिरक्षा होती है।

Vitamin

1-  vitamin या जीवन सत्व भोजन के अवयव हैं जिनकी सभी जीवों को अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। रासायनिक रूप से ये कार्बनिक यौगिक होते है। उस यौगिक को vitamin कहा जाता है जो body द्वारा पर्याप्त मात्रा में स्वयं उत्पन्न नही किया जा सकता बल्कि भोजन के रूप में लेना आवश्यक हो। आहार में vitamin का रहना पोषण के लिए आवश्यक है।

2-  विभिन्न vitamins की कमी से उत्पन्न विकृतियाँ

vitamin A- कैरोटिन (carotin)- रतौधी, आँख की सफेदी पर झुर्री (xerophthelmia)

3-  B1- थियामिन या आन्युरिन – बेरीबेरी(Beri-beri)

4-  B2- रिबोफ्लेविन (Riboflavin)- आँखे लाल रहना, होंठ पर झुर्री, मुंह आना, जीभ फूल जाना, चमड़े की विकृति

5-  B- पेलाग्रा- रक्षक (Pellagra preventing)- पेलाग्रा होना (विशेष चर्म-रोग)

6-  B6- पाइरिडोक्सिन (pyridoxin)- वमन- मस्तिष्क रोग तथा दस्त आना।

7-  B12- स्यानोकोबैले ऐमाइन (Cyanocobalamin)- विशेष रक्त हीनता और संग्रहणी

8-  C- एसकौर्बिक अम्ल- स्कर्वी (scurvy)

9-  D- कैल्सिफेरोल (Calciferol)- सुखंडी, रिकेट (rickets)

10-E- टोकोफेरोल (Tocopherol)- पुरुषत्व और स्त्रीत्व में कमी

11-P- रूटीन (rutin)- कोशिकाओं से रक्तपात

12-K- ऐन्फेंटामिन (Amphetamine)- रक्त में जमने की शक्ति की ह्रास

13-फोलिक एसिड (Folic acid)- विशेष रक्तहीनता

खनिज तत्व (Mineral)

1-  नमक: sodium chloride भोजन में रूचि बढ़ाता है और body के जल और लवण के संतुलन देता है। इसके अभाव में दुर्बलता और थकावट मालूम होती है। अधिक नमक से शोथ होता है। औसत प्रतिदिन 8-10 ग्राम खाया जाता है। यह नमक खाने, दूध और vegetables से प्राप्त होता है।

2-  Calcium: पोषण के लिए 0.9 से 1 ग्राम तक calcium की आवश्यकता प्रतिदिन पड़ती है। यह मात्रा ढ़ाई पाव दूध से प्राप्त हो सकती है। सब्जी, अनाज और आमिषाहार में भी यह भिन्न भिन्न मात्राओं में पाया जाता है। बढ़नेवाले बच्चे, गर्भवती और दूध पिलानेवाली स्त्रियों के लिए इसकी मात्रा प्रतिदिन लगभग 1.5 ग्राम होना जरूरी है। इसके अभाव में bones ठीक से नही बनतीं और सुखंडी रोग हो जाता है। गर्भवती और दूध पिलानेवाली स्त्री के आहार में calcium की कमी से उसकी bone से calcium निकलकर bones कोमल होकर ओस्टेमेलेशिया (ostomalecia) का रोग हो सकता है।

3-  phosphors: पोषण के हेतु इसकी मात्रा कम लगती है। किलोग्राम भारवाले व्यक्ति के लिए 0.88 ग्राम phosphors पर्याप्त 3,000 calorie के आहार से इसकी कमी का कोई भय नही।

4-  Iron: पोषण के लिए प्रति दिन 12 ml लोहे की आवश्यकता है। इसकी मात्रा गर्भावस्था तथा milk देने की अवस्था में बढ़ जाती है। इसकी कमी से एक प्रकार की रक्तहीनता (anemia) होती है।

5-  आयोडीन: नाम मात्र से पोषण के लिए उपयुक्त है। यह थाईरायड के hormone है। यह thyroid के बहुत जरूरी है। इस hormones की कमी से बौनापन (cretinism) और myxidoema है। यदि पीने के पानी में इसकी मात्रा कम हुई तब विकृत घेघे के रूप में प्रकट होता है।

जल (Water)

1-  जल या पानी एक रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु (H2O), दो hydrogen और एक oxygen परमाणु से बना है।

2-  जीवित कोशिका का 70 से 90 पानी है।

3-  जल मानव body का एक जरूरी वाहक है, जो आवश्यक पोषक तत्वों को विभिन्न कोशिकाओं तक पहुंचाता है।

4-  जल मानव body के तापमान को control करता है।

5-  पानी मानव body में जैव रासायनिक प्रक्रिया में भाग लेता है।

6-  जल body के अपशिष्ट पदार्थो को मूत्र एवं पसीने के रूप में बाहर निकलता है।

7-  जल आमतौर पर द्रव अवस्था में पाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है।

8-  पृथ्वी का लगभग 71% सतह को जल से आच्छित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल ऐक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटियों में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है।

9-  जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुंचना शामिल है।

सूक्ष्मजीव (Microorganism)

1-  सूक्ष्मजीव जीव है जिन्हें मनुष्य नंगी आँखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव कहते है। सुक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का study किया जाता है।

2-  सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते है। यह मृदा, जल, वायु, हमारे body के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते है। जहां किसी प्रकार जीवन संभव नही है जैसे तापीय चिमनी, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तो के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते है।

3-  जीवाणु एक कोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलीमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये प्रोकैरियोटिक, कोशिका भितियुक्त, एककोशिकीय सरल जीव हैं, जो प्राय: सर्वत्र पाए जाते है।

4-  विषाणु अकोशकीय अतिसूक्ष्म जीव है जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते है। ये नाभिकीय अम्ल और protein से मिलकर गठित होते है, body के बाहर तो ये मृत-समान होते है परन्तु body के अंदर जीवित हो जाते है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नही कर सकता है।

5-  फंफूद या कवक एक प्रकार के पौधे है जो अपना भोजन सड़े गले मृत कार्बनिक पदार्थो से प्राप्त करते है। ये संसार के प्रारम्भ से ही जगत में उपस्थित है। इनका सबसे बड़ा लाभ इनका संसार में अपमार्जक के रूप में कार्य करना है।

6-  शैवाल (algae) सरल जीव है। अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते है अर्थात स्वपोषी होते है। ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते है। ये नम भूमि, अलवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते है।

7-  लाइकेन (Lichen) निम्न श्रेणी की छोटी वनस्पतियों का एक समूह है, जो विभिन्न प्रकार के आधारों पर उगे हुए पाए जाते है। इन आधारों में वृक्षों की पत्तियों एवं छाल, प्राचीन दीवारें, भूतल, चट्टान और शिलाएं मुख्य है। इनकी वृद्धि की गति मंद होती है एवं इनके आकार और बनावट में भी पर्याप्त भिन्नता रहती है।






No comments:

Post a Comment