बच्चा अन्य बच्चों की तरह, पढ़ व् समझ नही पाता। यह एक disorder हो सकता है, जिसे शिक्षित माता-पिता भी आसानी से accept नही कर पाते। आंकड़ों की माने तो हर बारह में से एक बच्चे में dyslexia के लक्षण देखने को मिलते है।
शरारती आँखे, प्यारी मुस्कराहट और चंचल स्वभाव वाला अमित दूसरे बच्चों की तरह ही सामान्य दिखता था। बुद्धिमान भी था, पर पता नही क्यों... एक दिन school teacher ने माता-पिता को उसे बाल रोग विशेषज्ञ से जांच कराने की सलाह दी। उसे school का homework करने में दिक्कतें आ रही थी शायद इसलिए। वह जब विशेषज्ञ के पास गया तो उसे कई तरह के क्षमता परीक्षणों से गुजरना पड़ा।
मुल्यांकन के बाद अमित का IQ level 126 आया, जो सामान्य (90-110) से काफी अधिक था।school में उसके ख़राब प्रदर्शन को देखकर यह कहा नही जा सकता था कि अमित का IQ level इतना हो सकता है। वह मौखिक रूप से हर सवाल का जवाब देता था, पर लिखने-पढ़ने की बात आती तो उसे दिक्कत होती थी। 10 साल की उम्र में भी वह अक्षरों को उल्टा-पुल्टा लिख रहा था। दायें को बाएं और बाएं को दायें बताता था। doctor ने अपनी जाँच में पाया कि उसे एक तरह की सीखने की problem है, जिसे dyslexia कहतें है।
Dyslexia association of india के एक अनुमान के मुताबिक इस समय देश में 15 से 20% बच्चे इस problem से पीड़ित हो सकते है। वही अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि 1000 बच्चों के school में 150-200 बच्चे इस problem से पीड़ित मिल जायेंगे।
क्या है Dyslexia
dyslexia वह स्थिति है, जिसमें दिमाग की बोलने-लिखने की क्षमता प्रभावित होती है। विशेषज्ञों ने इसे reading disorder का नाम दिया है। बच्चें जहां 6-7 साल की उम्र तक अक्षरों को पहचानने लगते है, वही इस problem से पीड़ित बच्चें अक्षरों के बीच ही उलझे रह जाते है। वह बी और डी, 13 और 31 6 और 9 जैसे एक से दिखने वाले या सुनाई देने वाले अक्षरों या संख्याओं में अंतर कर पाने में अक्षम होते है। वे पाठ को बहुत देर से समझते है और पढ़ा है वह याद नही रख पाते। बहुत सारे study इस ओर इशारा करते है कि यह आनुवांशिक हो सकता है।
आप कैसे पहचानेगे
इस problem से परेशान बच्चों में निम्न लक्षण देखने को मिल सकते है...
वर्तनी में गड़बड़ करना, लम्बे वाक्यों को न समझ पाना, मेथ्स में कमजोर होना, ब्लैकबोर्ड से copy न कर पाना, सही उच्चारण न कर पाना, देर से बोलना व् शब्दों में तुक न बैठ पाना, रंग, अक्षर और संख्या जैसी मूल चीजें न समझ पाना, ख़राब हैण्डराइटिंग, शब्दों में अक्षरों का क्रम सही न लगा पाना, विभिन्न अक्षरों और उनकी ध्वनि में अंतर न कर पाना, विदेशी भाषाओँ को सीखने में दिक्कत आना, संख्या- किसी व्यक्ति या चीज का नाम या mobile number याद न रख पाना, दिशाओं को लेकर भ्रम करना, दायें को बाएं समझना और बाएं को दायें समझना, उपर और नीचे में अंतर न कर पाना, तालमेल वाले काम न कर पाना, जैसे जूते के फीते या शर्ट का बटन न लगा पाना।
Problem के accept करें
मां-बाप का बच्चे की इस problem को accept न करना उपचार में देरी का सबसे बड़ा कारण है। लक्षण दिखाई देने पर विशेषज्ञ से सलाह लें। कई बच्चे सिर्फ स्पेशल education से ही पूरी तरह ठीक हो जाते है।
इनसे लें मदद
किसी पंजीकृत चिकित्सक, थेरेपिस्ट जैसे clinical या रिहैबिलिटेशन साइकोलॉजिस्ट, आक्युपेशनल थेरेपिस्ट, स्पीच और language therapist, special educator की मदद ले सकते है। ये विशेषज्ञ रिहैबिलिटेशन कौंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा पंजीकृत होने चाहिए। इससे पीड़ित अन्य बच्चों के अभिभावकों के contact में रहें।
शिक्षकों से मिलें
स्पेशल एजुकेटर्स अलग-अलग तरीकों से पढना- लिखना, हैण्डराइटिंग और पढाई से जुड़े दूसरे skills सिखाते है। ऐसे बच्चों को audio book से समझाना बेहतर होता है।
माहौल तैयार करें
उनकी क्षमताओं के हिसाब से उनकी पढ़ने में मदद करें। शांत जगह में बच्चे को पढ़ाएं। उन्हें homework पूरा करने के लिए पर्याप्त समय दें। घर का माहौल शांत बनाएं। उनकी रूचि वाले क्षेत्र में आगे बढने का मौका दें, जैसे थियेटर, संगीत व् कला।
हीन-भावना न बढ़ने पाए
हो सकता है कि जाने-अनजाने उन्हें यह अहसास कराया जाता हो कि वह दूसरे से अलग है। उन्हें समझाएं कि यह कोई problem नही है। उनकी तारीफ़ करें।
Test करने का एक तरीका यह भी
आप चाहें तो नीचे गये link पर जाकर websites पर दिए गये सवालों के जवाब का option चुन कर dyslexia के लक्षण की पहचान कर सकते है-
थेरेपिस्ट चुनने से पहले रखें ध्यान
थेरेपिस्ट की विशेषज्ञता, प्रसिद्धि और उसके द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में जानें। थेरेपी सेण्टर का नजदीक होना रहता है बेहतर।
कब बढ़ जाती है दिक्कत
जिन बच्चों में dyslexia की पहचान नही हो पाती या problem को दूर करने के उपाय नही किये जाते, उनकी problem बढ़ती चली जाती है। बच्चें पढना-लिखना सीख नही पाते और हीन-भावना के शिकार हो जाते है। नतीजन वे school में fail होने लगते है और दूसरों बच्चों की अपेक्षा खुद को असमर्थ महसूस करते है और धीरे-धीरे tension के शिकार हो जाते है। अभिवावक उन्हें सजा देने लगते है। बच्चें के मन में यह बैठ जाता है कि वह बेवकूफ है या बुरा है। धीरे-धीरे उनका self-confidence घटने लगता है। dyslexia बच्चों में व्यवहारिक और भावनात्मक problem से ग्रस्त होने की आशंका काफी ज्यादा होती है।
अमेरिका स्थित द येल सेण्टर फॉर dyslexia and creativity के अनुसार-
1- जरूरी नही कि जो बच्चे शब्दों या अक्षरों को उल्टा लिखते है, वे dyslexia से ग्रस्त हों। सामान्य बच्चें भी शुरुआत में ऐसा करते है।
2- ऐसे बच्चे या व्यस्क धीरे-धीरे पढना सीख जाते है। पर कई बार पढ़ने में काफी मशक्कत होती है।
3- ऐसा केवल लड़को में नही होता। यह problem लड़का और लड़की दोनों में पाई जा सकती है।
इन हस्तियों को भी था Dyslexia
ऐल्केजेंडर ग्राहम बेल, पेरी क्युरी, एल्बर्ट आइंस्टीन, अभिषेक बच्चन, थामस अल्वा एडिसन, लियोनार्डो डा विन्सी, पैब्लो पिकासो, मोहम्मद अली, स्टीवन स्पीलबर्ग, लुइस कैरल, टॉम क्रूज, स्टीव जॉब्स जैसे success नामों की लम्बी सूची है, जिन्होंने इस problem को अपनी सफलता में आड़े नही आने दिया।
होते है कई गुण भी
1- पजल सुलझाने में अव्वल होते है।
2- उनकी कल्पना शक्ति मजबूत होती है।
3- मौखिक test में करते है अच्छा प्रदर्शन।
4- कला से जुड़े क्षेत्र जैसे design, drama, संगीत में सफलता पाते है।
5- बातों का सार तुरंत समझ लेते है।
6- पढाई से जुड़े क्षेत्रो को छोड़कर अन्य क्षेत्रो में अच्छे होते है, जैसे कि computer, खेल-कूद, रचनात्मक आदि।
7- असाधारण रूप से दूसरों के लिए सहानभूति और प्रेम का परिचय देते है।
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