हम जिसे अहं का नाम देते है, वह दरअसल जब पहचान में आ जाता है, तो फिर वह उसी रूप में नही रह जाता। दरअसल, अगर आपके अंदर अहं active है तो आपको इसका पता तक नही चलेगा। बस तभी तक इसे अहं कहा जायेगा। जिनमें अहं बहुत ज्यादा होता है, वे उसके बारे में रूचि भी नही रखते है। उन्हें अहं का गुमान तक नही होता।
अहं या पुरानी प्रवृति
मजा तब आता है, जब आप इसे पहचान लेते है। काबू में भी यह तब ही आता है। उस वक्त के बाद से यह अहं नही रहता, बल्कि कोई पुरानी और अब तक सक्रिय आदत या विचारधारा जैसा कुछ रह जाता है। इसे आसानी से यूँ समझिये। मान लीजिये कि आपकी बड़े-बड़े नाम लेने की आदत है। ऐसे में आप अपने बगल वाले पर प्रभाव जमाने के लिए यह कह सकते है कि मुझे दलाई लामा को phone करना है, वे मेरे phone का इंतजार कर रहे होंगे। लेकिन, जब आप यह कह रहे होगें तो एक तरफ आप यह अनुभव कर रहे होंगे कि यह झूठ ही है। उस पल में आप अपने अहं को पहचान रहे होते है, जो चाहता है आप की भी प्रतिष्ठा बने और आप एक शख्सीयत की तरह पहचान जाएँ। चुकिं उस पल में आपने अपने अहं को उसके घटित होते समय ही पहचान लिया था, इसलिए यह अहं नही रह गया था।
अब करिश्मा ये होता है कि अगली बार के लिए आप इस पर निगाह रख सकते है। और फिर जब दोबारा कोई बड़ा नाम बताने की इच्छा होगी तो आप उसे पहले ही पहचान लेंगे। चूँकि आप इस उत्कंठा को समझ चुके है तो एक लम्बी सांस लेकर इसके शांत हो जाने का इंतजार करेंगे।
आप मुक्त हो सकते है
जिस वक्त में आप इस उत्कंठा को पहचान लेते है, मुक्ति का एक तत्व आपमें पहुंच जाता है। फायदा यह होता है कि विचारों का यह pattern तो अभी भी active रहता है, लेकिन आप उसके दास नही रहते।
ना दुश्मनी, ना दोस्ती
अहं को दुश्मन भी ना मानिए। जब आप इसे अपना दुश्मन मान बैठेंगे तो इसकी negativity दोगनी हो जाती है। दूसरी गलती यह सोच है कि आप इससे जीत सकते है। पर जैसे ही आप इससे लड़ाई लड़ने लगते है, आप इसी का हिस्सा हो जाते है।
काबू करें करुणा से
करुणा आपके अंदर एक लचीलापन जगाती है। खुद को, सच्चाई को accept करने की एक स्वाभाविक प्रवृति। इसलिए, जब अहं दर्शन आप वर्तमान में कर रहे हो तो आप खुद से मन ही मन कह सकते है, ‘देखो तो, मैं फिर से वही कर रहा हूँ। कितनी मजेदार बात है।‘ हंसकर मुक्त हो जाना भी एक तरीका है। जब आप अपनी प्रवृतियों पर हंसने लगते है तो फिर दोबारा उनके उभरने से पहले ही उन्हें पकड़ लेने में सक्षम हो जाते है। जैसे किसी विषय पर मत देने की तीव्र उत्कंठा आये तो अहं से खुद को अलग कर चुका व्यक्ति सोचेगा, ‘क्या मुझे बात कहनी चाहिए या मैं इसे टाल सकता हूँ? देखते है कि अगर नही बोलता हूँ तो क्या होता हैं?’
दबाएँ नही, अपनी इच्छा से छोड़ने का व्यवहार अपनाएं। खुद को कहें, ‘जाने दो यार, मुझे यहाँ अपना जताने की जरूरत नही है।‘ इस इच्छा को स्वेच्छा से त्याग दें, फिर देखें कि अंतर्मन में क्या उठता है? सबसे पहले लगेगा कि आप छोटे साबित हो गये। लेकिन जैसे-जैसे आप इस सोच को बनाये रखते है, अपने मन में गहरे कुछ विश्वास पनपने लगते है। अहं आपकी धरती के उपर चट्टानी पहाड़ जैसा खड़ा देखना चाहता है। वह महसूस करवाना चाहता है कि आप भी कुछ है। वह महसूस करवाना चाहता है कि आप भी कुछ है। वह कभी भी पहाड़ के नीचे घाटी की हरियाली, खुशहाली को वरीयता नही देता।
मानवता के पुराने ग्रंथो में भी सच्ची शक्ति को ग्रहण करने की बात की जाती है। सच्ची शक्ति आकारों में नही, बल्कि आकारहीन तथ्यों और तत्वों में होती है, वह हमारे प्रायोजन में होती है, उद्देश्य में होती है, जिसे मैं कभी-कभी हमारे अस्तित्व का सार भी कहता हूँ।
तो, जब आप अपने अहं से मुक्त होने का तरीका जान जाते है, तब आपमें खुद को जताने के लिए कुछ कहने की उत्कंठा पैदा नही होती। जरूरत होती है तो कहते हैं, अन्यथा चुप रहते है। यही सच्ची शांति है, हाँ, जब तक इस अवस्था को पा नही लेते, अपने अंदर active अहं के व्यवहारों के प्रति करुणा बरतें। खुद को इसके लिए बुरा ना कहें। बस उसे पहचानकर उसका दास होना बंद कर दें। आप शांति महसूस करेंगे।
# इस article के writer ‘एकहार्ट टोल’ जो जर्मनी मूल के कनाडाई निवासी और लेखक है। उनकी गिनती आध्यात्मिक प्रभाव रखने वाले प्रभावी वक्ताओं में होती है। ‘The Power of now’ उनकी प्रसिद्द किताब है।
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