पाचन तंत्र (Digestive System)
1- मानव के पाचन तंत्र में एक आहार-नाल और सहयोगी ग्रंथिया (यकृत, अग्नाशय आदि) होती है। आहार-नाल, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय और मलद्धार से बनी होती है। सहायक पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथि, यकृत, पित्ताशय और अग्नाशय है।
2- आहार पदार्थो के विशेष घटक protein, carbohydrate, वसा, vitamins, खनिज लवण और जल है। सभी खाद्य पदार्थ इन्हीं घटकों से बने रहते हैं। किसी में कोई घटक अधिक होता है, कोई कम। body का 2/3 भाग जल है।
3- पाचन का प्रयोजन है आहार के गूढ़ अवयवों को साधारण घटकों में विभक्त कर देना। यह कार्य मुंह में लाल रस द्वारा, आमाशय में जथरस द्वारा, ग्रहणी में अग्नाशयरस (pancreatic juice) तथा पित्त (bile) द्वारा और क्षुंदात्र में आंत्ररस (succus entericus) द्वारा सम्पादित होता है।
4- आमाशय में पाचन की क्रिया जठररस की क्रिया द्वारा होती है। आमाशय की श्लेष्मल कला की ग्रंथियां यह रस उत्पन्न करती है। जब आहार आमाशय में पहुंचता है तो यह रस चारों ओर की गंथियों से आमाशय में ऐसी तीव्र गति से प्रवाहित होने लगता है जैसे उसको उंडेला जा रहा हो। इस रस के दो मुख्य अवयव पेप्सिन नामक enzymes और hcl acid होते है। पेप्सिन की विशेष क्रिया protein पर होती है, जिसमें hcl acid सहायता करता है।
5- उदर के दाहिने भाग में उपर की ओर body की यकृत (liver) नामक सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त का निर्माण करती है। वहाँ से पित्त पित्ताशय में जाकर एकत्र हो जाता है और पाचन के समय एक वाहिनी द्वारा ग्रहणी में पहुंच सकता है। यह हरे रंग का गाढ़ा तरल द्रव्य होता है। वसा के पाचन में इससे सहायता मिलती है।
6- बृहदांत्र का कार्य केवल अवशोषण है। यह अंग विशेषतया जल का अवशोषण करता है। मलत्याग के समय मल जिस रूप में बाहर निकलता है, वह बृहदांत्र जल का अवशोषण कर लेता है। जल के अतिरिक्त वह थोड़े glucose का भी अवशोषण करता है, पर और किसी पदार्थ का अवशोषण नही करता। इसके अतिरिक्त लोह, मैग्नीशियम, calcium आदि body का त्याग बृहदांत्र ही में करते है। यहाँ उनका उत्सर्ग होकर वे मल में मिल जाते है।
7- आहार का जो कुछ भाग पचने तथा अवशोषण के पश्चात आंत्र में बच जाता है वही मल होता है।
श्वसन तंत्र (Respiratory System)
1- श्वसन तंत्र में साँस सम्बन्धी अंग जैसे नाक, स्वरयंत्र (larynx), श्वासनलिका और फुफ्फुस (lungs) आदि शामिल है। body के सभी भागों में गैस का आदान- प्रदान (gas exchange) इस तंत्र का मुख्य कार्य है।
2- नाक से ही सांस लेनी चाहिए क्योंकि नाक के अंदर छोटे-छोटे बाल होते है। ये बाल हवा में मिली धूल को बाहर ही रोक लेते है, अंदर नही जाने देते। मुंह से सांस कभी नही लेनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हवा (सांस) के साथ धूल और हानिकारक कीटाणु भी अंदर चले जाते है।
3- सांस-नली प्राय: साढ़े चार इंच लम्बी, बीच में खोखली एक नली होती है, जो गले में टटोली जा सकती है। यह भोजन की नली (अन्न नाल) के साथ गले से नीचे वक्षगहर में चली जाती है। वक्षगहर में, नीचे के सिरे पर चलकर इसकी दो शाखाएं हो गई है। इसकी एक शाखा दायें फेफड़े में और दूसरी बाएं फेफड़े में चली गई है। ये ही दोनों शाखाएं वायु नली कहलाती है। श्वास नली और वायु नली फेफड़े में जाने के प्रधान वायु पथ है।
4- फुफ्फुस (Lungs): हमारी छाती में दो फुफ्फुस (फेफड़े) होते है- दायाँ और बायाँ। दायाँ फेफड़ा बाएं से एक इंच छोटा, पर कुछ अधिक चौड़ा होता है। दायें फेफड़े का औसत भार 23 औंस और बाएं का 19 औंस होता है। पुरुषों के फेफड़े स्त्रियों के फेफड़ो से कुछ भारी होते है। फेफड़े चिकने और कोमल होते है। इनके भीतर अत्यंत सूक्ष्म अनंत कोष्ठ होते है जिनको ‘वायु कोष्ठ’ (Air cells) कहते है। इन वायु कोष्ठों में वायु भरी होती है। फेफड़े युवावस्था में मटियाला और वृद्धावस्था में गहरें रंग का स्याही मायल हो जाता है। ये भीतर से स्पंज-समान होते है।
5- श्वसन क्रिया (Respiration): साँस लेने को ‘श्वास’ और सांस छोड़ने को ‘प्रश्वास’ कहते है। इस ‘श्वास-प्रश्वास क्रिया’ को ही ‘श्वसन क्रिया’ कहते है।
6- श्वास-गति (Breathing Rate): साधारणत: स्वस्थ मनुष्य एक minute में 16 से 20 बार तक सांस लेता है।
परिसंचरण तंत्र (Circulatory System)
1- परिसंचरण तंत्र अंगो का वह समुच्चय है जो body की कोशिकाओं के बीच पोषक तत्वों का यातायात करता है। इससे रोगों से body की रक्षा होती है तथा body का ताप एवं pH स्थिर बना रहता है।
2- amino acid, विधुत अपघट्य, gas, hormones, रक्त कोशिकाएं तथा nitrogen के अपशिष्ट उत्पाद आदि परिसंचरण तंत्र द्वारा यातायात किये जाते है। केवल रक्त-वितरण network को ही कुछ लोग वाहिका तंत्र मानते है, जबकि अन्य लोग लसीका तंत्र को भी इसी में सम्मलित करते है।
3- वाहिकातंत्र ह्रदय, धमनियों तथा शिराओं के समूह का नाम है। धमनियों और शिराओं के बीच केशिकाओं का विस्तृत समूह भी इसी तंत्र का भाग है। इस तंत्र का काम body के प्रत्येक भाग में blood को पहुंचाना है, जिससे उसे पोषण और oxygen प्राप्त हो सकें।
4- केशिकाओं के blood से पोषण और oxygen उतकों में चले जाते है और इस पोषण और oxygen से विहीन blood को वे शिरा में लौटाकर heart में लाती है जो उसको फेफड़े में oxygen लेने के लिए भेज देता है।
5- heart एक पेशी-उतक से निर्मित चार कोष्ठोंवाला खोखला अंग, वक्ष के भीतर, उपर, दूसरी पर्शुका और नीचे की ओर छठी पर्शुका के बीच में बाई ओर स्थित है। इसके दोनों ओर दाहिने और बाएं फेफड़े है। इसका आकार कुछ त्रिकोण के समान है, जिसका चौड़ा आधार उपर और विस्तृत निम्न धारा (lower border) नीचे की ओर स्थित है। इसपर एक दोहरा क्लानिर्मित आवरण चढ़ा हुआ है, जिसका ह्रदयावरण (pergicardium) कहते है। इसकी दोनों परतों के बीच में थोड़ा स्निग्ध द्रव भरा रहता है।
6- ह्रदय भीतर से चार कोष्ठों में विभक्त है। दो कोष्ठ दाहिनी ओर और दो बाई ओर है। दाहिनी और बाई ओर के कोष्ठ के बीच में एक विभाजक पट (septum) है, जो दोनों ओर के blood को मिलने नही देता। प्रत्येक ओर एक कोष्ठ उपर है, जो आलिंद (Auricle) कहलाता है और नीचे का कोष्ठ निलय (ventricle) कहा जाता है। दाहिने निलय में उर्ध्व ओर अधो महाशिराओं के दो छिद्र है, जिनके द्वारा blood लौटकर heart में आता है। एक बड़ा छिद्र आलिंद और निलय के बीच में है, जिसपर कपाटिका (valve) लगी हुई है।
7- धमनियां heart से pure blood को ले जानेवाली लचीली नालियाँ या वाहिकाएं है, जिनके द्वारा blood अंगो में पहुँचता है। heart से निकलनेवाली मुख्य महाधमनी है, जो वक्ष में से होती हुई उदर के अंत पर पहुंचकर, दो अंतिम शाखाओं में विभक्त हो जाती है। महाधमनी से शाखाएं, निकलकर अंगो में चली जाती है। ज्यों-ज्यों शाखाएं, निकलती जाती है, उनका आकार छोटा होता जाता है। ये छोटे आकारवाली धमानिकाएं (Arterioles) कहलाती है।
8- धमनियाँ शुद्ध blood को heart से ले जाती है और अंगो में सूक्ष्म कोशिकाओं में अंत हो जाती है, जिनके द्वारा अंग पोषण और oxygen blood से ग्रहण कर लेते है। इन कोशिकाओं से शिराएँ प्रारम्भ होती है, जिनके द्वारा पोषण और oxygen से रहित blood से ग्रहण कर लेते है। इन कोशिकाओं से शिराएँ प्रारम्भ होती है, जिनके द्वारा पोषण और oxygen से रहित blood heart को लौटकर आता है।
9- वाहिकातंत्र का पहला important element केशिकाएं(Capillaries) कहलाता है। धमनियों और शिराओं के बीच में केशिकाओं का समूह स्थित होता है। heart से धमनियों में blood आता है। ये धमनियां केशिकाओं में विभक्त हो जाती है। केशिकाओं के दूसरी ओर से शिराएँ प्रारम्भ होती है। इस प्रकार केशिकासमूह एक झील के समान होता है, जिसमें एक ओर से नदी प्रवेश करती है ओर दूसरी ओर से दूसरी नदी निकलती है।