एक युवा लड़की अपने प्रेमी को बहुत प्यार करती थी। वह job के काम से किसी दूसरे city में रह रहा था। काफी समय हो गया था, इसलिए उसे बहुत याद करती थी। एक बुजुर्ग थे, जिन्हें वह बहुत मानती थी। उनके पास अक्सर जाया करती थी। उनकी हर बात मानती थी। अबकी बार उसे उनसे मिले काफी समय हो गया था। आख़िरकार एक दिन वह उनसे मिलने पहुंची।
बुजुर्ग ने महिला का स्वागत किया और उसके हाथ में ताजे अंगूरों से भरी टोकरी पकडाई और कहा,’ क्या तुम उस पहाड़ को देख रही हो?’ महिला ने कहा, ‘हां’
बुजुर्ग ने कहा, ‘इस टोकरी को उठाओ और उस पर्वत के उपर लेकर जाओ।‘ महिला ने कुछ नही पूछा। हालाँकि वो यह करने की इच्छुक नही थी। नाखुश मन से उसने वह टोकरी उठाई और पहाड़ की दिशा में कदम बढ़ाने लगी। जैसे-जैसे चढ़ाई आ रही थी, चढ़ना मुश्किल हो रहा था। वह मन ही मन बोल रही थी कि बुजुर्ग ने उसे किस काम पर लगा दिया है, उसे यह क्यों करना पड़ रहा है? इस काम का मतलब ही क्या है? व्यर्थ ही यहाँ आयी। इस तरह वह मन ही मन बुदबुदाए जा रही थी। सूरज की तेज धूप उसे झुलसा रही थी। अंगूर के गुच्छों का वजन अब असहनीय हो रहा था। कुछ भी उसे उपर चढ़ने के लिए प्रेरित नही कर रहा था।
आख़िरकार वह पर्वत के उपरी हिस्से तक पहुंच गयी। उसने खुद को सुंदर और शांत फूलों की घाटी में खड़ा हुआ पाया। अंगूर अभी भी ताजा दिख रहे थे। वह घाटी के चारो ओर देखने लगी, तभी उसने देखा कि उसका प्रेमी उसकी ओर आ रहा है। वह उसे देर तक देखती रही। वह मुस्कराते हुए उसका स्वागत कर रही थी। अंत में महिला ने इतना ही कहा,’ अगर मैं जानती कि ये अंगूर मेरे प्रेमी के लिए है तो पूरे रास्ते में इतना उखड़ी हुई नही रहती। इन अंगूरों को धूप से बचाकर लाती। अपनी शिकायतों में मैंने पर्वतों की उस सुन्दरता को भी नही देखा, जिस पर मैं चढ़े जा रही थी।‘
ऐसी ही दशा हमारी life में होती है कि अपने जीवन-यात्रा में अपने शिकायतों का इतना पिटारा लेकर चलते है कि उस जीवन-यात्रा में पड़ने वाली उन खूबसूरत चीजों को नजरंदाज कर देते है, जो हमारे जीवन को ख़ुशी देते है।
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