90 वर्षीय एक बुजुर्ग ने अपने पोते को उसकी wife के साथ किसी बात पर ऊँची आवाज में बहस करते हुए देखा। दादा ने पोते से पूछा,’ तुम अपनी पत्नी से गुस्से में इतनी ऊँची आवाज में क्यों बात करते हो?’
पोता: मै धैर्य खो बैठता हूँ। मुझसे बर्दाश्त नही होता, इस कारण मेरी आवाज ऊँची आवाज हो जाती है।‘
दादा: पर तुम्हारी पत्नी तो तुम्हारे बिलकुल पास ही खड़ी है। वही बात तुम अगर धीरे भी बोलेगे तो भी उसे सुनाई दे जायेगा। तो फिर तुम तेज आवाज में क्यों बोल रहे हो?’
पोता: क्योंकि तेज बोलने पर ही आवाज सुनी और समझी जाती है। आवाज ऊँची होने से मेरे भीतर का क्रोध भी बाहर निकल जाता है।‘
दादा: नही, कारण यह नही है बेटा। सच यह है कि जब तुम अपनी पत्नी से गुस्सा हो रहे होते हो, उस समय तुम उसके दिल से दूर हो जाते हो। भले ही तुम शरीर कि दृष्टि से बिलकुल पास ही खड़े हो, पर तुम्हे लगता है कि वह तुमसे दूर है। इसलिए उसे अपनी आवाज सुनाने के लिए तुम तेज आवाज में बोलने लगते हो।‘
नाराज या गुस्सा होने पर तेज आवाज में बोलने का मतलब है कि उन क्षणों में वह व्यक्ति तुम्हारे दिल से दूर हो चुका है।‘
पोता: ‘यदि यही कारण है तो तो तब क्या होता है जब हम प्रेम में होते है?’
दादा: ‘जब दो व्यक्ति प्रेम में होते है, तो उनका दिल एक-दुसरे के नजदीक होता है। उस समय धीरे से फुसफुसाने पर भी एक-दुसरे कि बात साफ-साफ समझ आ जाती है। ऐसे क्षणों में मौन भी विचारो को एक-दुसरे तक पहुंचा देता है।‘
No comments:
Post a Comment