smartphone के मरीजो की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। इतना ही नही, problem के नाम भी ‘smart’ हो रहे है, जैसे
बैड स्मार्ट फ़ोन पॉस्चर, mobile vision syndrome, cellphone एल्बो
और टेक्स्ट क्लॉ आदि। बच्चे हो या बड़े, सब इनकी गिरफ्त में
है।
एक government bank में काम करने
वाले Delhi निवासी आनन्द प्रकाश बेहद परेशान हो गये, जब मनोचिकित्सक ने उनके 15 वर्षीय बेटे को कुछ दिन के लिए hospital
में दाखिल करने की सलाह दी। बच्चों व् युवाओं में mobile की बढ़ती लत की स्थिति जब अन्य नशे की लत से पीड़ित व्यक्ति के समान हो जाए,
तो वाकई internet de-activation center में
दाखिल करने की नौबत आ सकती है। हालांकि शुरूआती स्तर पर ही सतर्क हो जाने पर केवल counselling
व् कुछ medicine से काबू पाया जा सकता है।
बच्चे
हैं सबसे अधिक शिकार
theory of cognitive
development के अनुसार शारीरिक गतिविधियों बच्चों की motor
skill विकसित करने में मदद करती है। मिटटी व् क्ले से खेलना या
दौड़ने-भागने जैसी गतिविधियों का जो असर body की सम्पूर्ण
सेहत पर पड़ता है, वह virtual दुनिया से
नही मिलता।
जापान
सइतोकु university में हुए एक research के अनुसार mobile के जरिये संवाद पर आश्रित होने से बच्चे सांकेतिक भाषा और शारीरिक हाव-भाव
नही सीख पाते। उनकी संवेदनशीलता में कमी आने के अलावा बच्चों में गुस्सा, चिड़चिड़ापन व् एकाग्रता में कमी जैसे लक्षण भी बढ़े हैं। यहा तक कि उनकी इस
लत का असर उनके परीक्षा के नतीजों पर भी पाया गया है।
Mobile की
लत के लक्षण
1- उँगलियाँ,कलाई,आँख व् गर्दन में pain
रहना। सिर भारी रहना
2- अनिद्रा
3- depression, आक्रोश और तेजी से
मूड बदलना।
4- खुद को mobile चलाने से रोक न पाना
5- friends व् family के साथ होने पर भी बेचैनी होने लगना
6- कान में mobile की घंटी सुनाई देने का भ्रम होना
रोगों
के smart नाम
टैक्स्ट
क्लो और सेल फ़ोन एल्बो दो शब्द है, जो mobile पर अधिक typing
से होते है। इससे कलाइयों व् उँगलियों में swelling और हाथ देर तक एक ही स्थिति में रहने से कोहनी में अकड़न आने लगता है। बहुत
अधिक smartphone इस्तेमाल करने वालों में हाथ और कलाई की यह problem
काफी तेजी से बढ़ रही है। इसी तरह ‘टेक्स्ट नेक’
शब्द, गर्दन की मांशपेशियों में खिंचाव से आई
चोटों से जुड़ा है। यह problem typing के बजाय mobile पर अधिक game खेलने से होती है। विशेषज्ञों के
अनुसार बच्चों व् किशोरों में गले व् कंधो की मांशपेशियों में दर्द के मामले पहले
से बढ़े है।
कानों
की बढ़ती problem
घर, बाहर,office, व्यायाम और यहाँ तक कि सड़क पर चलते और driving करते
हुए, earphone का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है। accident
आदि की घटनाएँ तो है ही, विशेषज्ञों के अनुसार
पहले की तुलना में किशोर पीढ़ी टिनीनस ( कान में आवाज गूंजने की problem) से अधिक जूझ रही है। इसे बहरेपन की शुरूआती चेतावनी के तौर पर लेना चाहिए।
किशोरावस्था में इसके उपचार पर ध्यान न देने पर 30 से 40 साल की उम्र के होने तक
बहरापन हो सकता है। हालाँकि पहले टिनीनस को उम्रदराज लोगों की problem से जोड़ कर देखा जाता था।
क्या
है उपचार: इस मामले में अभिभावकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती
है कि वे किशोरों में इस आदत को बढ़ने से रोकें। earphone इस्तेमाल करते समय आवाज को कम रखें,
साथ ही लगातार न सुनें।
Mobile Vision Syndrome
लगातार
texting करने के दौरान आँख व् phone
के बीच की कम दूरी आँखों से जुड़ी कई problem पैदा
कर रही है। आँखों में pain रहना, धुंधला
दिखाई देना, आँखों की नसें कमजोर होने लगना व् सिर दर्द की
शिकायत होना आम बात है। दरअसल देर तक स्क्रीन देखने पर हम सामान्य से कम आँखे
झपकाते है, जिससे डाईआई की problem बढ़
जाती है। इतना ही नही, देर रात तक स्क्रीन देखने से brain
में नीद को active करने वाले रसायन मेलाटोनिन
का स्राव ढंग से नही हो पाता। यह रसायन, रोशनी और अँधेरे का
विशलेषण करता है। इसकी कमी होने से brain तक सोने का सन्देश
नही पहुंच पाता और व्यक्ति को अनिद्रा की शिकायत रहने लगती है।
क्या
है उपचार: mobile text हमेशा बड़े font
size में पढ़े। phone को चेहरे से लगभग 16 इंच
की दूरी पर रखें। 20-20-20 का नियम इस्तेमाल करें। यानी हर 20 minute बाद किसी 20 foot की दूरी पर रखी चीज को 20 seconds
देखें। सोने से कम से कम आधे घंटे पहले सभी gadget बंद कर दें। आँखे झपकाते रहें।
मन की
सेहत का रखें ध्यान
america में
हुए research की report बताती है कि
लोगों में बिना किसी alert या जरूरत के mobile जांचते रहने की प्रवृति बढ़ी है। हर समय social networking से जुड़े रहने की जरूरत तन व् मन को तनाव मुक्त नही होने देती। देर तक किसी
का message न आना या फिर post पर कोई comment
न मिलना tension और एंजाइटी का शिकार बना रहा
है। एक study के अनुसार अगर दो या अधिक mobile लोग आपस में बातचीत कर रहे हैं, तो इस दौरान mobile
हाथ में थामे व्यक्ति के प्रति दूसरे व्यक्तियों में negative
भावना का संचार होता है। हर चीज mobile में
सुरक्षित रखने की आदत हमारी डिक्लेरेटिव memory यानी चीजों
को याद करने की क्षमता को नुकसान पहुंचा रही है। सूचनाओं को विस्तार में समझने का
चलन भी घटा है। लोगों में multitasking की प्रवृति बढ़ी है,
जिससे लोग हर समय दो से अधिक काम करते है, जो health
के लिए अच्छा नही है।
खतरे की घंटी!
1- mobile इस्तेमाल करते समय हर एक
इंच सिर को आगे झुकाना रीढ़ पर दो गुना और गर्दन पर तीन गुना अधिक वजन डालता है।
2- चार में से एक आँखों के मरीज में pain का कारण mobile की छोटी screen पर पढ़ना और game खेलना पाया जाता है।
3- WHO के अनुसार, गाड़ी चलाने के दौरान mobile के इस्तेमाल से सड़क accident
के मामलों की आशंका तीन से चार गुना बढ़ गयी है।
4- सामान्य तौर पर हम एक minute में 15 बार आँख झपकाते है,
पर mobile देखते समय यह संख्या आधी हो जाती
है।
5- हर रोज 10 से 20 minute phone पर बात करने वालों की तुलना में 2 घंटे
बात करने वालों में सुनने से जुड़ी problem की आशंका बढ़ जाती
है।
6- अच्छी selfie लेने के लिए सिर को 60 degree तक झुकाना, गर्दन व् कंधे के पास की रीढ़ की हड्डी पर
सात साल के बच्चे के भार जितना वजन डालता है।
Tags: जो सोचा, नही हुआ तो क्या हुआ! Motivational Quotes विश्वास की दुनिया
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