किसी भी शारीरिक pain के साथ जीना एक चुनौती है। मैं इसे पूरी
तरह से समझती हूँ। 2007 में, मैं Thoracic outlet syndrome की
चपेट में आ गई थी। यह बेहद दर्दनाक स्थिति होती है। इसमे
coller-bone और पसलियों के बीच की मांसपेशियों, शिराएँ और धमनियां
संकुचित होने लगती है।
फिर भी, जैसा कि ज्यादातर हम सभी करते हैं, मुझे विश्वास था कि मेरी
हालत जल्द ही ठीक हो जाएगी। pain दूर हो जायेगा। प्राय: शारीरिक
बीमारियों में यही होता है। पहले pain शुरू होता है और कुछ दिनों या
हफ़्तों में वह ठीक हो जाता है। इस बीच हम pain या बेचैनी को कम
करने के लिए कुछ medicine खा सकते है, कुछ उपाय कर सकते है।
लेकिन अगर pain जड़ जमा ले और किसी चीज से ठीक न हो, तब हमें क्या करना चाहिए? स्वाभाविक
जवाब होगा कि उससे निपटने का उपाय करना चाहिए। यानी रोज-रोज का संघर्ष। सटीक medicine
और कारगर उपचार की तलाश। एक के बाद दूसरी medicine को आजमाना। अगर कोई भी चीज काम
न करे तो अंततः एक सुबह जगने पर हमें पता चलता है कि pain से लड़ने के लिए अब हमारे पास कोई
हथियार नही बचा है। ऐसे में हम बिलकुल छोर पर पहुंच जाते है। हम तय करते हैं कि अपने pain की
अनदेखी करेंगे, हमें इसके साथ ही रहना होगा। फिर हम मुस्कराने की कोशिश करते है। pain को
नजरअंदाज करते है। किस्मित या शरीर को दोष देने लगते है। पर pain जमा रहता है, कायम रहता
है।
pain से लड़ना थका देने वाला होता है। यह tension पैदा करता है, जो दर्द को ठीक करने की राह में
बाधा होता है। लम्बा pain, समय के साथ असहायता और निराशा को जन्म दे सकता है। अगर pain
में सुधार न हो तो व्यक्ति खुद को किसी अँधेरे कुए में पाता है।
ऐसे में क्या कोई बीच का रास्ता नही है, जो pain से लगातार लड़ने के मुकाबले कुछ कम थकाने
वाला और कम निराश करने वाला हो? मैंने दोनों स्थितियों के बीच बरसों गुजारे। तब, मैंने उस रास्ते
को चुना, जहाँ दर्द के बीच भी अधिक सहजता और अनुग्रह के साथ रहा जा सकता था। इसलिए
pain के बारे में अपनी धारणा को बदलने की कोशिश की। मैंने pain को महसूस करने और उस पर
प्रतिक्रिया देने के अपने तरीके को बदल दिया। इससे मुझे pain के साथ अपने रिश्ते को और अधिक
positive रचनात्मक बनाने के तरीके मिल गये। आखिरकार, मुझे कुछ राहत का अनुभव हुआ। मैंने
तीन तरीके से pain के साथ अपने relation में बदलाव किया। ये तरीके थे-
दर्द से दोस्ती
इसने मुझे यह समझने में बहुत मदद की कि pain कोई दुश्मन नही है। यह एक संकेत और सन्देश
है, जो हमें बताता है कि body खुद को ठीक करने की कोशिश कर रहा है। pain अंदर की आवाज़
है, जो बताती है कि वहां कुछ तालमेल बिगड़ गया है, जिसको सही रखने की कोशिश की जा रही है।
pain को यातना मानने की बजाय, मैं उसे अपने body का स्वाभाविक संचार समझने लगी। मैंने खुद
से पूछा, अगर यह प्रतिकूल की बजाय, किसी positive मकसद से हुआ तो, अगर यह body के किसी
हिस्से की ओर ध्यान दिलाने के लिए हुआ तो, तब मैंने pain से पूछना शुरू किया कि वह क्या चाहता
है। मैं अपने body की सहायता के लिए उसको क्या दे सकती हूँ और क्या कर सकती हूँ। मुझे समझ
में आया कि वह मुझे अंदर और बाहर दोनों जगह थोड़ा धीमा होने के लिए कह रहा था। मैंने सीखा कि
pain पर गुस्सा या नफरत की बजाय उस पर अलग तरीके से ध्यान देने की जरूरत थी। जब मैंने उसे
सुनने, उसका सम्मान करने और दयालु होने की कोशिश की तो मेरा tension और pain कम होने
लगा।
सही तरीकों की तलाश
मैंने pain के साथ जीने के बारे में diary लिखनी शुरू की, जिसने मुझे इस अलग तरह से देखने में
मदद की। मैंने दर्द के साथ जीने की अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं के बारे में लिखा। मैंने नुकसान
और अकेलेपन, शर्म और हताशा के बारे में लिखा। फिर मैंने दर्द के बारे में और खुद के बारे में अपने
लिखे को जोर से पढ़ा। इससे हम दोनों ने सुन लिया और हम दोनों ने आराम किया। दर्द ने जाना शुरू
कर दिया।
मैं तब एक कदम और आगे बढ़ी। मैंने ऐसे एक व्यक्ति को अपने दर्द सुनाया, जो मुझ पर भरोसा कर
सकता था। मैंने उससे कहा कि वह कोई सलाह न दे। सिर्फ खुले दिल से मेरी बातें सुने। मैंने उसे अपने
दुःख और भय, अकेलेपन और शर्म के बारे में बताया। मैंने उसे ऐसी बातें बताई, जो मैंने कभी किसी
को नही बताई थी, क्योंकि मैं इन सभी चीजों को एक साथ रखने की कोशिश कर रही थी। कोई बिना
कुछ पूछें या सुझाये आपको pain का साक्षी बनता है और मानता है कि आप तकलीफ में हैं तो यह
बात बहुत राहत देती है।
थोडा समय चाहिए
मैंने यह भी पाया कि pain अपने लिए मोहलत मांग रहा था। मेरी जल्दबाजी के कारण body ने सही
reaction नही दी। pain की अपनी खुद की समय सारिणी थी। pain को ठीक होने के लिए उसे समय
देना body से हमारे रिश्ते को बेहतर बनाने में मदद करता है। ऐसा करना उपचार के लिए अधिक
अनुकूल था। ऐसा करने के बाद मैंने और अधिक अनुकूल था। ऐसा करने के बाद मैंने और अधिक
स्वतंत्र रूप से सांस ली। हर चीज अधिक आराम की मुद्रा में आ गई और मैं उपचार को लेकर अपने
जूनून को control कर सकी।
मैंने दर्द के खिलाफ जोर देना बंद कर दिया और चिकित्सा प्रक्रिया पर भरोसा करना बंद कर दिया।
हैरतअंगेज रूप से मुझे आराम आराम मिलने लगा। जब मैंने उससे तत्काल दूर जाने की अपेक्षा की,
तब वह बढ़ गया। लेकिन जब मैंने उसे धैर्य व् प्यार से संबोधित किया, तब मुझे जल्दी राहत महसूस
होने लगी। आखिर में, मैंने यही पाया कि यह दृष्टिकोण पुराने pain से राहत दिलाने में कारगर है।
इनमें से कोई भी नजरिया pain से पूरी तरह मुक्ति की गारंटी नही है, लेकिन ये राहत, आशा और
सही बदलाव की पेशकश लगभग तुरंत कर सकते है। लम्बे समय से pain के साथ रह रहे लोग जानते
है कि दर्द से राहत का एक छोटा सा उपाय भी उनके लिए किसी बड़े उत्सव से कम अहमियत नही
रखता है।
दर्द समय के साथ किसी आध्यात्मिक गुरु जैसा कुछ बन जाता है। इसने मुझे सिखाया है कि कैसे
अधिक गहराई से, अधिक सहज होकर जीना है। दर्द के साथ रहने से मुझे यह समझने में मदद मिली
कि life में मेरे लिए क्या important है।
# इस article की writer सारा एनी शोकन है, जो writer, education film director और नियमित
स्तंभकार। वह Thoracic outlet syndrome का सामना कर रही है। ‘The pain companion’ नाम
से book भी आ चुकी है।
Tags: दूसरों को खुद में देखना ही सच्चा प्रेम गर हो खुद पर विश्वास