अगर
हम सभी एक है, तो हम कुछ व्यक्तियों की ओर क्यों attract होते हैं,
जिसे हम प्रेम कहते है! यह सवाल अक्सर आपके मन में आता होगा।
दरअसल, सच्चा प्यार इंद्रियों से
परे होता है। उसका body से बहुत लेना देना नही होता। अपने
भीतर की पहचान किये बिना सच्चा प्रेम नही होता। अपने भीतर के निराकार को जान कर ही
हम दूसरों में खुद को महसूस कर सकते है। रूप या आकार में नही, भाव से प्यार होना ही सच्चा प्रेम है।
जब तक आप दिमाग से संचालित होते है, आपको सच्चा प्रेम नही हो सकता। प्रेम का एहसास हो सकता है, लेकिन वो सच्चा प्रेम नही होता। मसलन-हममें से ज्यादातर लोगों ने अपने life
में महसूस किया होगा कि उन्हें प्यार हो गया है। लेकिन वास्तव में
एक-दो लोग होते है, जो सचमुच प्यार में होते है। ज्यादातर
लोगों में कुछ समय बाद ही प्यार का एहसास समाप्त हो जाता है। हमें सच्चे प्रेम और
तथाकथित प्रेम के दूसरें रूपों को समझने की जरूरत है। रूप आभासी होता है, अपूर्ण होता है और चेतना, जो निराकार होती है,
वह पूर्ण होती है।
मनुष्य (humun being) दो आयामों का
सम्मलित रूप है- ‘व्यक्ति’ और ‘भाव’ (being)। व्यक्ति रूप है और भाव चेतना है,
जिसका कोई रूप नही होता।
कई कारणों से हमारा एक-दूसरे के प्रति attract हो सकता है। जैसे, आप माँ के गर्भ से पैदा हुए है,
इसलिए आपको उससे प्रेम है। आप पुरुष हैं तो किसी स्त्री के प्रति attract
हो गये। माँ के प्रति आपका प्रेम ‘personal’ कहा
जा सकता है। इसी तरह कोई person किसी दूसरे person के प्रति attract होता है, तो
कई बार उसे ही प्रेम कहा जाता है। ज्यादा आसक्ति बहुत दुःख का कारण भी बन जाती है।
प्रेम के इस रूप में आप या तो स्त्री या फिर पुरुष के रूप में विभाजित हो जाती है।
दूसरे के प्रति attract अपने
अधूरेपन को खत्म करने की कोशिश है। विपरीत ध्रुव के माध्यम से तृप्ति पाने का
प्रयास है। attract के मूल में यही बात होती है। अगर आप किसी
दूसरे के प्रति attract है, तो इसका
मतलब हो सकता है कि आप दूसरे व्यक्ति में कुछ खास गुण ढूढने की कोशिश कर रहे है,
जो आपके कुछ खास गुणों के साथ मेल खाते है। अगर उसके गुण आपके आपके
गुण से मेल नही खाते, तो यह भी हो सकता है कि आपके
व्यक्तित्व में जो नही है, आप उसे दूसरें में ढूढ़ने की कोशिश
कर रहे है। अगर आप एक बेहद शांतिप्रिय इंसान है, तो हो सकता
है आप उस व्यक्ति के प्रति attract हो जाएँ, जो बहुत नाटकीय स्वभाव वाला है। यह भी पूर्णता की ही तलाश है। अब अगर आपके
life में ‘व्यक्तिगत प्रेम’ मौजूद है, तो फिर जीवन में किस चीज का अभाव है?
वह चीज है अतीन्द्रिय प्रेम, जिसका body
से कोई सम्बन्ध नही है।
दो व्यक्तियों का एक-दूसरे के प्रति attract प्रारम्भ में शारीरिक हो सकता है। अगर
वे साथ रहना शुरू करते है, तो यह attract लम्बे समय तक नही रह पाता। इसी बिंदु पर आकर अतीन्द्रिय प्रेम की आवश्यकता
होती है, ताकि रिश्ता और गहरा हो सके। सच्चा प्रेम, इस attraction का अंतिम सोपान है। यह important
बात है कि सच्चा प्रेम आपके शाश्वत और निराकार आयाम से उत्पन्न होता
है। वह समय और रूप की सीमाओं में कैद नही होता।
कई बार आपको लग सकता है कि हां, यही प्यार है और कुछ दिन साथ रहने के बाद आपको महसूस होता है कि ‘मुझसे गलती हो गई’ या मैं पूरी तरह से बहक गया था/
गई थी’। माता-पिता और बच्चों के रिश्तों में भी, जो सबसे करीबी सम्बन्ध माना जाता है, अगर प्रेम का
अतीन्द्रिय आयाम नही उत्पन्न होता, तो उनके रिश्ते कुछ और ही
हो जाते है। यही वजह है कि कुछ लोगों के अपने माँ-बाप से रिश्ते problem से भरे होते है।
कुछ रिश्ते physical attraction की वजह से प्रारम्भ हो सकते है और फिर कुछ समय इसमें दूसरा आयाम, जिसे हम अतीन्द्रिय कहते है, आता है और वह सच्चे
प्रेम के रूप में परिणत हो जाता है। यह सवाल पूछना बहुत अहम है है कि ‘क्या इस रिश्ते में गहराई है? या केवल विचार और
भावनाए है, तो यह एक भयानक जेल में रहने जैसा है। कई बार ऐसे
रिश्ते में आपको खास परेशानी नही होती, लेकिन असहमतियां होती
है, झगड़े होते है।
कोई मानसिक शोर नही, कोई
भावानात्मक तरंगे नही। इसका मतलब यह भी नही है कि भावनाएं नही हो सकती या विचार
नही आ सकतें, लेकिन इस रिश्ते में कुछ और भी मौजूद रहना
चाहिए। किसी भी मानवीय सम्बन्ध में यह सवाल पैदा होना अहम है, ‘क्या इस रिश्ते में space है?’ space का अर्थ है, जब विचार महत्वहीन हो जाएँ, यहाँ तक कि सारी भावनाएं भी महत्वहीन हो जाएँ। तभी life में सच्चा प्रेम उत्पन्न होता है और वही अंत तक टिका रह पाता है।
“इस subject के writer ‘एक्हार्ट
टोल’ है. जो जर्मनी मूल के कनाडाई निवासी और लेखक है। उनकी
गिनती आध्यात्मिक प्रभाव रखने वाले प्रभावी वक्ताओं में होती है। ‘The
power of now’ उनकी famous book है।
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