Sunday, November 18, 2018

बस रहें साथ, चुपचाप

Struggle and Friends


हर चीज का वक्त होता है, शब्दों का भी और चुप्पी का भी। सौभाग्यवश, जब मैं अपनी life के सबसे ख़राब वक्त से गुजर रहा था, तो मेरी life में कुछ ऐसे लोग थे, जिन्हें अच्छी तरह से मालूम था कि यह किस चीज का वक्त है। जब life में सब कुछ शानदार चल रहा हो, उस समय दोस्तों की चुप्पी की जरूरत नही पड़ती। पर, जब हम गहरे दुःख, दर्द या निराशा से जूझ रहे होते है तो उस वक्त सब कुछ बदल जाता है। मुझे ये सब अपने निजी अनुभव से मालुम है। एक serious accident के बाद मेरी life पूरी तरह से बदल गई। उस घटना के बाद मेरे जो दोस्त, रिश्तेदार मुझसे मिलने आ रहे थे, मैं उन सबका शुक्रगुजार था। उनकी बातें सुनकर, उनका प्यार पाकर मैं खुद को पहले से थोड़ा ज्यादा मजबूत पा रहा था।

लेकिन, मुझे वह वक्त भी सुकून दे रहा था, जब मेरे आसपास एक शब्द भी नही बोला जा रहा था। आसपास सिर्फ चुप्पी और गहरी शांति थी। मेरे सच्चे दोस्त बातचीत के बीच भी मुझे सोता हुआ देख परेशान नही होते थे। उन्हें मालूम था कि मुझे आराम करने की जरूरत है और उन्हें मेरे पास चुपचाप बैठने में भी कोई परेशानी नही थी।

जब मौन रखता है मायने

accident के चार माह बाद, जब हम सबको लग रहा था कि सब ठीक हो रहा है, ठीक उसी वक्त स्थिति और बुरी हो गई। पैर के एक infection के कारण मुझे चौथी बार operation थिएटर में जाना पड़ा। operation के बाद मुझे धीरे-धीरे समझ आने लगा कि मैं अब मैराथन कभी नही दौड़ पाउंगा। office में जो मुझे शानदार अवसर मिलने वाला था, वह अब हमेशा के लिए खत्म हो चुका है। जैसे-जैसे इस accident के कारण होने वाले नुकसानों की सूचि बनाता जा रहा था, वैसे-वैसे मेरी शारीरिक problem बढ़ने लगी। हौले-हौले मैं अवसाद की गिरफ्त में आने लगा। इस दौरान एक दिन जादुई-सा हुआ। hospital में अपनी पत्नी और दो अजीज friends के सामने मैं पहले धीरे-धीरे और फिर फूट-फूटकर रोने लगा। अगर उस वक्त कोई मुझे सांत्वना देने की कोशिश करता तो मैं उस पर चिल्ला उठता। पर, किसी ने ऐसा नही किया। friends और मेरी wife ने मुझे चुप्पी व् शांति का एक ऐसा उपहार दिया, जिसकी उस वक्त मुझे सबसे ज्यादा जरूरत थी। उन चार operation के बाद नही, बल्कि इस घटना के बाद सही मायने में मेरी हीलिंग यानी ठीक होने की प्रक्रिया शुरू हुई।

1-  जब हम कोई दर्दनाक हादसे का सामना करते है तो उस दर्द और दुःख का कुछ हिस्सा ऐसा होता है, जिसका भार सिर्फ हमें ही उठाना होता है। पर, दर्द का कुछ हिस्सा तो अपने साथ चलने वाले सच्चे friends के साथ साझा किया जा सकता है। मेरे ठीक होने की प्रक्रिया के दौरान मेरे friends मुझे घुमाने ले गए, घर के कामों में उन्होंने मेरी मदद की, office के काम में हाथ बंटाया, मेरे लिए मेरे पसंदीदा स्नैक्स लेकर आये। पर, इन सबके साथ उन्होंने मेरे दर्द को थामने में भी मेरी मदद की। दूसरे के दर्द को थामना एक चुनौती भरा काम होता है, पर इसका प्रभाव तेज गर्मी वाले दिन में एक गिलास ठंडा पानी मिलने जैसा होता है। जब मेरे friends मेरे दुःख के समय में चुपचाप मेरा साथ दे रहे थे, तो वे इस दौरान life में आगे बढ़ने और हिम्मत नही खोने की ताकत भी मुझे दे रहे थे।

2-  कई बार हम शब्दों का इस्तेमाल इसलिए करते है, क्योंकि चुप्पी हमे खलने लगती है। कई दफा बस इसलिए, क्योंकि दर्द और दुःख को देखकर हम असहज महसूस करने लगते है। पर, सही समय पर और सही तरीके से कहे गये शब्द life को नई energy देने का काम भी करते है। अपने दुःख के दिनों में hospital के बाहर की दुनिया, वहां के किस्से-कहानियां, किसी बच्चे का जन्म, किसी दोस्त की तुरंत बिताई हुई शानदार छुट्टी की बातें तो कोई मजेदार चुटकुला सुनने में मुझे सबसे ज्यादा मजा आता था। इन सबकी मदद से कुछ समय के लिए ही सही, पर मैं अपने निजी problem से ध्यान हटा पाता था। कई बार यें बातें भी सुनने का मेरा मन नही होता था और जब मैं अपने friends से यह कहता तो वे वापस मेरे आसपास चुप्पी की चादर फैला देते।

3-  social networking की दुनिया में भले ही हमारे हजारों friends हो, पर दुःख के समय में वो नाकाफी साबित होते है। दुःख के वक्त हमें अपने आसपास सच्चे friends के एक ऐसे घेरे की जरूरत महसूस होती है, जिनसे हम असल जुड़ाव महसूस कर सकें। Facebook आदि पर मिलने वाले सांत्वना के दो शब्द मन की सुकून तो पहुंचाते है, पर कुछ क्षण के लिए। अच्छे दोस्त अपनी मौजूदगी से दुःख के दर्द को धीरे-धीरे खुद में सोखते चले जाते है।

4-  सच्चे दोस्त दुःख और कष्ट के क्षणों में हमारे साथ अपनी मौजूदगी भर से हमें जिन्दगी में आगे बढ़ने, संघर्ष करने और दुःख व् पीड़ा को हराकर इस जंग को जीतने की प्रेरणा देते है। friends हमारे दुःख और दर्द को हमसे छीन तो नही पाते, पर वे अपनी उपस्थिति से उस दर्द को सहने की हमारी शक्ति जरुर बढ़ा देते है।




# इस article के writer ‘कैम टेलर’ जो writer, coach और blogger है। उनकी book ‘डीटूर’ संघर्षो का सामना करते हुए नए रास्तों के नक़्शे तैयार करने पर जोर देती है।













No comments:

Post a Comment